ये कहानी अधूरी कहानी - वर्टिगो का दूसरा हिस्सा है. मुहब्बत की कहानियाँ महाजन के ब्याज की तरह होती हैं. किश्तों में लिखते रहो, सूद चुकाते रहो। मूल कभी नहीं कमेगा। मूल चुकाने के लिए सब कुछ बेचना पड़ता है।
वो शाम याद है तुम्हें
एक पकी पुरानी सी हवेली थी
जिसमें तीतर का एक जोड़ा था
जो लम्बी किरणों पे चलता था
और जो पिघलते सूरज के साथ
झुरमुठों में गम हो गया था
मेरी वो पिघलती शामें
क्या वापस दे सकती हो ?
याद होगा तुम्हें
दरख्तों के साये में निकाली दोपहर
जब सोया करती थी मेरी
गोद में सर रखकर
ज़ुल्फ़ों में तेरी उँगलियाँ फिराकर
हौले से तेरे कानों में मैं
एक नज़्म छुपा दिया करता था
तेरी आँखों की मानिंद अलसायी
वो नज़्में क्या वापस दे सकती हो ?
पता है तुम्हें
पूस की लम्बी रातों में जब
सर्द हवा चेहरे पे चुभती थी
मैं लिहाफ से मुँह ढककर
तुम्हारी आवाज़ में जागता था
सच कहूँ ,
गर्म साँसों से दम घुट जाया करता था
मेरी वो खुदखुशी वाली रातें
क्या वापस दे सकती हो ?
"वॉव व्हाट ए ब्यूटीफुल पोएम। यू शुड शेयर योरसेल्फ विथ द वर्ल्ड। तुम्हे अपना एक ब्लॉग बनाना चाहिए। " लड़की ने व्यग्रता से कहा।
"मैं खुद को सिर्फ तुम्हारे साथ शेयर करना चाहता हूँ।" लड़के ने उतनी ही जल्दबाज़ी में कहा।
"ऐसा है मैं तुम्हारे थॉट्स की बात कर रही हूँ" ऐसा कहते हुए लड़की ने मुंह बना लिया।
"बट आई ऍम व्हाट माय थॉट्स आर। मैं जैसा दिखता हूँ वो मैं नही हूँ…मैं जो सोचता हूँ और जो लिखता हूँ वही मेरा पूरा अस्तित्व है...समझी तुम ???" लड़के ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।
"चिल्ला क्यों रहे हो ?" लड़की ने रोनी सूरत बना ली।
लड़के को लगा सच में उसे ऐसे बेवजह चिल्लाना नहीं चाहिए था।
"आई ऍम सॉरी। ब्लॉग वगैरह बाद में पर फसेुूक पर मैं अपने आप को जरूर शेयर करूँगा। " लड़की खुश हो गयी।
इन दिनों लड़की को लड़के की हर बात उतनी ही पसंद आने लगी थी जितनी की उसे सीसीडी की चॉकलेट फैंटसी विथ कैप्पूचिनो पसंद आती थी। और वह चाहती थी की सारी दुनिया को पता चले कि वह कितना अच्छा है और कितना अच्छा लिखता है। शायद यह हर लड़की के साथ होता है...लड़के ने सोचा। हर लड़की में एक और लड़की होती है। एक लड़की जो पहले खुद किसी को पसंद करती है,फिर दूसरी लड़की जो अपनी पसंद को पूरी दुनिया से सत्यापित करवाना चाहती है। पता नहीं ये दूसरी लड़की क्यों होती है। पर लड़का तो एक ही था इसलिए वह दो हिस्सों में बांटकर आधा हो गया।
"तुम्हे थिएटर में एक्टिंग करनी चाहिए " लड़के ने लड़की से कहा।
"व्हाट ??? ओह माय गॉड। हाउ डू यू नो ?" लड़की ने आँखें बड़ी- बड़ी करके उसके कंधे को लगभग नोचते हुए और झकझोरते हुए पूछा।
लड़के ने लड़की को कुछ ज़्यादा ही उत्साहित देखकर कहा "मतलब ?"
"मतलब ये कि हाउ डू यू नो दैट आई यूज्ड टू एस्पायर टू बी ऐन एक्टर, बताओ न प्लीज?"
लड़के को ऐसे मौके काम मिलते थे जब लड़की इस तरह उसपर टूटकर कुछ पूछती हो
" हा हा हा। .... तुम जो ये सेल्फ़ी लेते वक़्त बिल्लियों सा मुँह बनती हो न इससे पता चला मुझे। "
"अब बातें मत बनाओ।"
"अरे सच कह रहा हूँ। ऐसी भाव-भंगिमाएं एक एस्पाएरिंग एक्ट्रेस ही बना सकती है। " लगभग आँख मारते हुए कहकर लड़का हंसने लगा।
लड़की ने पहले तो मुँह बनाया फिर कहा "व्हाटवेर। बट आई लाइक्ड द वे यू ऑब्ज़र्व मी एंड इन्टरप्रेट..." और लड़के की गाल पर अपने होंठ रख दिए।
लड़का जमीन से दो हाथ ऊपर उठ गया। ऐसा लगा आज के बाद से अगर पूरी उम्र कोई उसकी तारीफ न करे और उसके गालों को न भी चूमे तो वो जी लेगा। ऐसे पलों में लड़का लड़की की तारीफ के कसीदे पढ़ने लगता था, उसकी सुंदरता की नहीं पर उसके गुणों की।
"पता है, मुझे तुम्हारी कौन सी बात सबसे ज्यादा अच्छी लगती है ?
"कौन सी?"
"तुम्हारी हर बात के बारे में अपनी एक राय है। जो सामान्यतया लड़कियों में कम पाया जाता है। "
लड़की ने लड़के की तरफ ऐसे देखा जैसे गुलज़ार की नज़्म का दूसरा अर्थ बताने पर उसे देखा था। लड़के को लगा इस बार तो चूम ही लेगी उसे। पर ऐसा नहीं हुआ।
"तो, मैं तो लड़की हूँ ही नहीं...मैं औरत हूँ। "
"पता है मैं शक्ल से काफी मेच्योर लगती हूँ। बस एक साड़ी पहन कर बिंदी लगा लूं तो पूरी औरत दिखती हूँ। " लड़की ने बात का सिरा कश्मीर से कन्याकुमारी तक खींच दिया।
"हो सकता है , पर मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगता है तुम्हे देखकर। हाँ, मैं अपनी उम्र से थोड़ा कम मेच्योर जरूर लगता हूँ।" लड़के ने हँसते हुए कहा।
"तो इसमें इतना खुश होने की कोई बात नहीं है। आई डोंट लाइक इट। यू शुड लुक मेच्योर इन-फैक्ट। "
"जैसे? "
"जैसे कि तुम्हारे सर पे बाल थोड़े काम हो जाएं....एक आध सफ़ेद हो जाएं तो और भी बेहतर "
"रहने दो...फिर मैं ऐसा ही ठीक हूँ। तुम्हें गुलज़ार से शादी कर लेनी चाहिए " लड़के ने लगभग शिकायत के लहज़े में कहा।
"मैं तो हमेशा तैयार हूँ" लड़की ने झट से जवाब दिया।
लड़के ने अगली सुबह आईना देखा तो दाढ़ी के ८-१० बाल सफ़ेद नज़र आने लगे। अचानक से वो अपने आप को थोड़ा बड़ा-बड़ा सा दिखने लगा। ये वो दिन थे जब लड़की जो कहती जाती थी लड़का वही हो जाता था। बिलकुल किसी रासायनिक प्रतिक्रिया के उत्पाद की तरह :
अभिकर्मक (लड़का ) + उत्प्रेरक (लड़की ) = उत्पाद (बदला हुआ लड़का) + बयप्रोडक्ट (खोया हुआ लड़का )
कई दिनों के बाद लड़के ने लड़की से कॉफ़ी की पहली घूँट के साथ पूछा
"तुमने मजाज़ लखनवी का नाम सुना है ?"
"मैंने लखनऊ का नाम सुना है "
"सीधे बोलोगी या नाक पर एक मुक्का मारूं ?" लड़की की बड़ी सी नाक को पकड़ कर हिलाते हुए लड़के ने कहा।आजकल लड़के को लड़की के अंगों पर कुछ कहना और फिर उनको छूना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लगा था। और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि लड़के का ऐसा करना लड़की को अच्छा लगने लगा था।
"और अगर सीधे नहीं बोला टेढ़े बोला फिर क्या करोगे ?" लड़की के इतना कहते ही लड़के ने लड़की की बांह उमेठते कर पीठ पर दो घूंसे लगा दिए।
लड़की ने पहले तो शक्ल बनायी फिर बनावटी रोना रोते हुए कहा "नहीं सुना" पहले जिन बातों पर दोनों घंटों काफी संजीदगी से बातें करते थे अब हंसी में करने लगे थे। मसलन नज़्मों की बातें।
"मुझे मजाज़ लखनवी की नज़्में और ग़ज़लें बहुत पसंद हैं। उन्हें उर्दू नज़्मों का "कीट्स" भी कहा जाता है। "
"अब ये कीट्स किस बला का नाम है ?"लड़की ने फिर चिढ़ाया।
सुनो तुम बस अब:
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूं मैं
क्या समझती हो कि तुमको भी भुला सकता हूं मैं
दिल में तुम पैदा करो पहले मिरी सी जुरअतें
और फिर देखो कि तुमको क्या बना सकता हूं मैं
दफ़न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज को
और तुम चाहो तो अफ़साना बना सकता हूं मैं
मैं बहुत सरकश हूं लेकिन इक तुम्हारे वास्ते
दिल बिछा सकता हूं मैं, आंखे बिछा सकता हूं मैं
तुम अगर रुठो तो इक तुमको मनाने के लिए
गीत गा सकता हूं मैं, आंसू बहा सकता हूं मैं
तुम समझती हो कि हैं पर्दे बहुत से दरमियां
मैं ये कहता हूं कि हर पर्दा उठा सकता हूं मैं
तुम कि बन सकती हो हर महफिल की फ़िरदौ-ए-नज़र
मुझको ये दावा कि हर महफिल पे छा सकता हूं मैं
आओ मिलकर इनक़लाब-ए-ताजातर पैदा करें
दहर पर इस तरह छा जाएं कि सब देखा करें।
"बहुत ही सुन्दर गीत है । पर मुझे ऐसी इंटेंस प्यार वाली फीलिंग्स से चिढ़ होती है। शायद मैं थोड़ी अजीब सी हूँ इस मामले में "
"पता है उन्हें एक शादी-शुदा औरत से इश्क़ हो गया था। कहते हैं उसके ग़म में बेमिसाल नज़्में लिखी। "
"शायद आर्टिस्टस के साथ ऐसा अक्सर होता है। है न ?" लड़की ने पूछने से ज्यादा अपनी राय दी।
"जरूरी नहीं किहर आर्टिस्ट के साथ हो "
"नहीं मैंने जितनों के बारे में पढ़ा,सुना है सब थोड़े अजीब से ही हैं…बिलकुल मेरी तरह।" और लड़की हँसने लगी।
लड़के ने कहना चाहा फिर तुमने शायद "दिनकर" और "बच्चन जी " को नहीं सुना और पढ़ा है या शायद तुमने "निदा फ़ाज़ली" और "प्रेमचंद" को नहीं पढ़ा और सुना है।
पर कहा "क्या मैं नंगा हूँ ?"
"व्हाट ? तुम फिर से शुरू मत हो जाना।" लड़की ने जवाब देने की बजाय एक सवाल और एक हिदायत दे दी।
जवाब न मिलने पर लड़का बकने लगा " मैं अपने आप को कभी-कभी अलख नंगा महसूस करता हूँ। नहीं…कभी-कभी क्यों लगभग हमेशा ही। एक बार की बात है बहुत पुरानी नहीं तो बहुत नयी भी नहीं। एक भूरे रंग के शहर में पक्का माकन था जिसमें लकड़ी के पट्टों से जोड़कर स्नानघर बनाया हुआ था। शादी के माहौल में स्नानघर दिन भर भरा रहता था। एक दिन मैंने देखा की लकड़ी के पट्टों के बीच का फासला अचानक से बढ़ गया है। नहीं नहीं… मेरी नज़र अचानक से बड़ी हो गयी है। या शायद पता नहीं पर कुछ हो गया था, जिससे मैं घर के हर औरत मर्द को उस स्नानघर में नंगा होकर नहाते हुए देखता रहा। उस दिन मेरी रूह नंगी हो गयी। तब से मैं अपने आप में नंगा महसूस करता हूँ। सपनों में भी मेरा अक्श नंगा ही होता है।" जबतक लड़का नेपथ्य में देखकर बोलता रहा लड़की, लड़के की हथेली पकड़ कर दबाती रही।
"बस चुप , कुछ भी बकते जा रहे हो " लड़की ने प्यार से एक झिड़की लगायी।
लेकिन लड़के ने कहा " हम्माम में सभी नंगे हैं। … तुम भी, है न ? "
"तुम पागल हो रहे हो। आजकल तुम्हारी तबियत कुछ ठीक नहीं रहती। क्या हो गया है तुम्हें ?"
"नहीं मैं सच कह रहा हूँ। यह अलग बात है कि मैंने कभी तुम्हें नहाते हुए देखा नहीं है "
"बस चुप रहो अब और कॉफ़ी ख़त्म करो "
कॉफी आधी होने तक लड़का लड़की के सामने पूरा हो चुका था।
उपसंहार : अव्वल तो इसे कहानी समझा जाए। क्यूंकि हो सकता है पढ़ते हुए ये कहानी एक नज़्म सी लगे । कभी-कभी अफ़सानों में बहते-बहते पूर्णविराम, अर्धविराम की शक्ल लेने लगते हैं और फिर अफ़साना नज़्म बन जाया करता है । फिर यह भी हो सकता है कि पढ़ने के बाद यह रचना दोनों में से कुछ भी न लगे । अब एक ऐसी रचना जो किसी ढांचे में ना बांधी जा सके और उसपर भी अधूरी हो तो यह जरा अजीब सा है। इसलिए जिस अधूरेपन को पूरी कहानी में बांटना है वो इस एक शेर में मुकम्मल है :
एक अरसा लगा जिसे ढूँढ़ते ज़माने की भीड़ में
सफ़हा सफ़हा खो रहा हूँ उसे अपनी तहरीर में
Image Credit: The Voyeur, Salvador Dali, Gouache, cubism and expressionism
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