निर्मोही से प्रीत लगा
मोह फिर क्यूँ बो रहा?
मलंग तू, फ़कीर तू
आज फिर क्यूँ रो रहा?

फिर बोझ हृदय पर
क्यूँ भारी सा रखा है ?
निज भावनाओ का चाप
बन गीत धरा पर सजा है
उन्मुक्त उड़ती उत्कंठा
मन कांपता थड़ थड़
अपनी खुशी के सामने
ढाल बन क्यूँ खड़ा है?

क्या कहें रीत जग की
ऐसी ही चली
हाथ में बन लकीरें
नियती कुछ कह रही
तू कैसे लकीरों में
फिर फंसा पड़ा है?
कैसे जोड़ेगा मन को
जब टुकड़ों में स्वयं बंटा है ?

जो है तुम्हारा
साथ देता ही रहा है
जो है नही उसे,
बांधने में क्यों पड़ा है ?
गगन धरा का मेल
क्षितिज पे होता है मगर
उस क्षितिज के छल में
कहाँ तू उलझ रहा है?

तिनको का घरोंदा था
मेघ से गीला ही होगा
नियति ने जो रच रखा है
वो तुझको मिला ही होगा
एक मौन स्वीकृति दे डालो
जो जैसा है उसे रहने दो
जो राख हुआ है आखिर
एक बार जला ही होगा ...

निज नीर से प्यास बुझे
मेघों की राह कौन तके?
स्वयं प्रेम हो, स्वयं सत्य हो
उसे पूर्ण फिर कौन करे ?

निर्मोही से प्रीत लगा
मोह फिर क्यूँ बो रहा?
मलंग तू, फ़कीर तू
आज फिर क्यूँ रो रहा?

["मलंग तू, फ़कीर तू" लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali
Picture credits: The Mask, by Frida Kahlo style - Oil on Masonite, Primitivism, Abstract,
reference : http://www.fridakahlofans.com/c0510.html

{ 4 comments ... read them below or Comment }

  1. लामया रचित काव्य संग्रह को share करने के लिए धन्यवाद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. @Madhurima I thank you on behalf of Lamya. You can also write for us. Send your work at de.blue.eyed.son@gmail.com

      Delete
  2. The rebel spirit!

    One more poem to love n recite...

    Thanks Lamaya!

    ReplyDelete
  3. Very nice poem and it tells us a great lesson.

    Anil Sahu

    ReplyDelete

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