सो कॉल्ड बुद्धिजीवी...
एक दिन पटाखे जला दिये
एक दिन पटाखे जला दिये
तो इनके फेफड़ों में धुआं सा जम जाता है...
एक दिन होली खेल ली
तो इन्हे सोमालिया में खड़े
प्यासे बच्चों की याद आ जाती है
सब के सब ... बुद्धिजीवी बन जीते हैं.
डियर लेडीज़ एंड जेंटिलमेन,
साल के तीन सो चौंसठ दिन
सामान खरीदने समय
प्लास्टिक का कैरी बैग तुम्हे चाहिये...
अपने घर में काम करने के लिये
एक बारह चौदह साल का छोटू
या पिंकी तुम्हे चाहिये..
अपनी कार, हर सवेरे,
धुली हुई तुम्हे चाहिये..
रुमाल बड़ा मिडिल क्लास लगता है
रेस्टूरेंट में एक के बाद एक
टिश्यू तुम्हे चाहिये..
पर हां...
पर हां...
तुमसे कुछ बोलना भी तो मेरी हिमाकत होगी..
तुम ठहरे पढ़े लिखे `इंटेलेक्चुअल`
जो अपने बच्चों को
कार के शीशे के अदर से दिखाते हो
ये बोल के कि बेटा
"सी.. पीपल आर सेलेब्रेटिंग दिवाली.."
और हम ठहरे मिडिल क्लास
जो अपने वच्चों को बोलतें हैं
"ले बेटा पटाखे और दिवाली मना
वरना बुद्धिजिवियों के बच्चों को
पता कैसे चलेगा कि दिवाली क्या है".
["सो कॉल्ड बुद्धिजीवी" राहुल द्वारा लिखी "ख्यालात" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें Khayalat ]
["सो कॉल्ड बुद्धिजीवी" राहुल द्वारा लिखी "ख्यालात" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें Khayalat ]
Image Credit: Starry Night, Edvard Munch, Expressionism, courtesy: J. Paul Getty Museum, Los Angeles