शिमला में आज हमारी छुट्टियों की आख़िरी शाम थी। वैसे, शिमला में भी नही, शिमला से लगभग 20 किलोमीटर आगे क्रेगनानो में। पापा की ट्रान्स्फर एक साल पहले यहाँ हो गई थी। क्रेगनानो के आस पास कोई अच्छा स्कूल तो क्या, दुकान तक नही है। मैं और मम्मी बस छुट्टियों में ही इधर आते थे। एक सरकार का ट्रैनिंग इन्स्टिट्यूट है इधर। देश भर से लोग ‘ट्रैनिंग’ लेने देने आते है। उनके रहने के लिए एक तीन मज़िला होस्टल भी है। हम भी वहीं रहते थे। सबसे निचली मंज़िल में मैस थी, अभी भी है, डोगरा जी की।
आज एक ट्रैनिंग का आख़िरी दिन होने के कारण, मैस में काफ़ी रौनक वाला माहौल बन रहा था। कुछ लोगों ने तो पी रखी थी। कुछ क्या काफ़ी लोगों ने। वही सब जो होता है ऐसे महौल में- गप्पें, रोना, हँसना, बहादुरी के किस्से, वही सब चल रहा था। मेरी मम्मी को तो दारू के नाम तक से ख़ासी नफ़रत है; सबूत यह की अगर टीवी में भी कोई पीता था तो हम टीवी बंद कर लेते थे, चैनल चेंज नही कर सकते थे, केबल नही था ना। “Hate the sin, not the sinner” में उनहें ज़्यादा यकीन नहीं था। वहीं पापा ऐसे माहौल को खासा आनंद उठाते हैं। उन्होंने खुद कभी नही पी, पर उनके ठहाके और गप्पों का अंदाज़, अकसर लोगों को चकमा दे देता है। मुझ में भी ये गुर शायद पापा से ही आया है, कहते हैं ना “Gone are the days when girls used to cook like their mothers, now they drink like their fathers”
खैर, खाना हो चुका था और गरमा-गरम गुलाबजामुन लिए, हम कोई 5-6 लोग दरवाजे के पास बैठे हीटेर सेंक रहे थे। मम्मी ऐसे "Sin and Sinner" माहौल में कुछ भी बोलना पसंद नही करतीं हैं। पूरे खाने के दौरान वो शायद ही कुछ बोलीं थीं। बाकी लोग अपनी हल्की फुल्की बातों में लगे थे, तभी मम्मी अचानक से झिझकते हुए बोलीं "गौतम जी मैने कुछ सुना था, पता नहीं कितना सच है। आपकी बेटी का आक्सिडेंट… कुछ साल पहले… मैने सुना था कुछ।"
मैंने हड़बड़ाहट में मम्मी को कोहनी मारते हुए "क्या मम्मी? कुछ भी…" या कुछ ऐसा ही कहा। गौतम जी भी शांत से हो गए। पर भावनाएँ तो आज पहले से ही उभर के आ रही थी, तो अगले ही पल थोड़ा सिसकने लगे, और सर हिलाते हुए बोले "मुझे बहुत प्यार था भाभी जी उससे, सच में God-gifted थी जी वो। पता नही क्या ही हो गया… भगवान भी ना… स्कूल छोड़ने जा रहा था मैं उसे।“ गौतम जी आस-पास से नज़र बचाते हुए, अपने आँसू रोक रहे थे, पास बैठे वर्मा अंकल ने उन के कंधे पर हाथ रखा और हौसला दिलाने के लिए कुछ कहा। इस बात को कोई 5-6 साल हो गए थे, सुना तो मैंने भी था, और शायद बाकी सब ने भी, पर कैसे, ये पूछने की कभी किसी की हिम्मत नही हुई थी।
थोड़े विराम क बाद ठाकुर साहब रुंधी हुई आवाज़ में बोले "मेरे दो बच्चे हैं अब, एक बेटा एक बेटी, पर सच में वह बहुत ख़ास थी, बहुत तेज़, पढ़ाई में, बातों में। उस दिन मुझे पता भी नही चला और किसी ट्रॉली ने बैक होते हुए हमें टक्कर मार दी, मुझे तो खरोच तक भी नही आई शर्मा जी"।
ऐसे भावुक समय में कोई क्या ही बोल सकता था, गौतम जी बोल रहे थे तो हम चुपचाप सुन रहे थे । "वो हमारा पहला बच्चा था जी… बहुत प्यारी। वो सच में बहुत स्पेशल थी शर्मा जी। उसे आना ही था।" फिर आवाज़ थोड़ी धीरे करते हुए बोले "हमने उसकी बारी में 2-3 abortions भी करवाए, हमें एक ही बच्चा चाहिए था ना, इसलिए। उस की बारी में तो डॉक्टर ने बेटा ही बताया था पर बेटी हुई, देखो, थी ना जी वो God-gifted। डॉक्टर्स, साइन्स, सब को मात देके आई थी वो।" कह के गौतम जी अपने आँसू रोकते हुए, सिगरेट लिए बाहर निकल लिए।
मैने पहली बार किसी बाप को इस तरह रोते हुए देखा था। पहले बच्चे के जाने का दुख… पर फिर लगा, वो उनका पहला बच्चा थोड़े ही था, दूसरा और तीसरा भी नही। तो फिर इतना दुख क्यों? पहले, दूसरे, तीसरे का तो कोई दुख नही! अजीब सा विरोधाभास था…
["हमारा पहला बच्चा" Scheherazade की रचनाओं में से पहली है. और पढ़ने के लिए देखें Scheherazade ]
Picture: The Womb, Oil Pastels on Paper, By Kumar Ashutosh
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अजीब इंसान था!! दो बच्चो को पैदा होने से पहले मार दिया उसके दुःख नहीं है उसे!!
ReplyDeleteअजीब सा विरोधाभास था… :-)
ReplyDeletePadhte rahiye, padhate rahiye :-)
दर्द को महसूस करने के कई वजह के साथ-साथ उसे बयान करने की कोशिश, दु:ख- दर्द के अनुभूति की बहुआयामी कोशिश...
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