हैरान से चेहरे लिए घूमते हैं
कुछ कहते हैं, कुछ करते हैं
हँसते
ज़रा
कम हैं, मेरे शहर वाले
यू भागते, भटके हुए से
अपनी तलाश में उलझे हुए से
रात में दिन का ख़ालीपन टटोलते
और दिन में रात के रिश्ते खंगालते
हर दौड़ जीतने की होड़ में
कठपुतली बन बैठे
ज़रा नाराज़ से, मेरे शहर वाले
स्वार्थ संवेदना पर हावी है
शोर है बहुत
बाहर भी…अंदर भी…
मुखौटें
हैं
चेहरों
पर
परेशान
सा
आईना पहचानता ही नहीं
बंद खिड़की से बारिश को देखते
बादल को कोसते
घरो में नकली फूल सजाए
गीली मिट्टी की खुशबू से अंजान, मेरे शहर वाले
आँखें यहाँ मिलती हैं
एहसास और आवाज़ का मेल नहीं मिलता
इस भीड़ भरे शहर में
दर्द मिलते हैं हमदर्द नहीं मिलता
हर चीज़ की कीमत लगाते
हर गम का इलाज़ बेचते
बुलबुले सी ज़िंदगी जीते पर
खुद
को
खुदा मान बैठे, मेरे शहर वाले
सपनो के पंख लगे हैं
चाह के भी सोने नहीं देते
क्या करू? कहूँ क्या?
जो नींद ओर रातों में सुलह हो ज़ाये
चलो ना, लौटते हैं उन्ही रस्तो पर
जहाँ बचपन कहीं रह गया
वहीं कहीं एक हँसी भी होगी
उसे साथ अपने शहर ले आएं
भूलते हैं रफ़्तार को
छोड़ के सब, दो पल को ठहर जाएं
हँस
ले इतना
कि आँखों में पानी भर जाए
क्या पता शोर में
शायद कोई गीत बन जाए
इस बेजान से शहर में
शायद कोई धड़कन आ जाए
["मेरे शहर वाले" लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali]
Picture credits: Seasons by Jasper Johns, style - Neo-Dadaism, contemporary
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