हाँ सच ही तो हैवो अबला है

छलक उठती हैं आँखें उसकी, तुम्हारी वेदना देख के
फैला लेती है आँचल अपना, तुम्हारी संवेदना सुन के 

नही खड़ी रह सकती, तुम्हारे शारीरिक बल के सामने
रो उठती है वो, तुम्हारी हर कटु बात के आगे 

उसकी यही विवशता है, तुम्हे स्नेह वो करती है
पीछे पीछे चल कर के, तुमको पुरुष बनती है 

कभी मातृ धर्म, कभी पत्नी धर्म निभाती है
तुम्हे जीवन देने हेतु, अपना लहू पिलाती है 

कभी अर्धांगनी बन के, तन मन न्योछावर करती है
हार के सबकुछ अपना भी वह फूले नही समाती है

द्रौपदी कह उसका चीर हरण कर लेते हो
अपने को पुरुष बता, व्यर्थ ही खुश हो लेते हो 

सर्वस्व समर्पित करने पर भी, जब संतुष्ट नही तुम होते हो
लेने लग जाते हो अग्नि परीक्षा, जब हवा देनी हो पुरुषार्थ को 

           सच ही कहते हो तुम वो अबला है
           सच ही कहते हो तुम वो अबला है 

बस बहुत हुआ, बने रहने दो उसे अबला
मत लो उसके मौन की परीक्षा
अब तुम सीमा लाँघ रहे हो
अपने विनाश समीप स्वयं जा रहे हो
वो शक्ति है, वो ज्वाला है
वो जननी है, वो माता है 

उसमे छमता है सर्वनाश कर देने की, इस बात को कभी न वो बल देगी
उसे आदत है जीवन देने की, वो क्षमा तुम्हे भी कर देगी
तुम्हारे पश्चाताप की एक वाणी, उसे फिर अबला बना देगी
वह ममता से विवश हो, अपना आँचल फैला देगी
उसका सम्मान करो,
उस बेटी पे अभिमान करो
मत होने दो उसका चीर हरण,
मत करो उसका प्राण हनन
उस शक्ति को बने रहने दो अबला
           तुम पुरुषार्थ दिखाओ, वो उसमे खुश हो जाती है
           हाँ सच ही कहते हो तुम, वो अबला है वो नारी है
["वो अबला है" लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की पहली कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali]

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Picture: by Kamini Raghavan 

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