जाने कहाँ चला आया
सिरहाने हूँ सन्नाटे के
कल तो खेला गाया
चोगा पहने, चौबारे में
माँ ने रोट पकाया था
मैने पेट भर खाया था
दुआ भी कर सोया था
थोड़े खिलोने थे,
पर ना रोया था ...
ये कहर फिर क्यूँ आया ?
क्यूँ ऊपर वाला गुस्साया ?
जन्नत से बारुदें बरसीं
जीने को फिर ज़ानें तरसी
अब हर लम्हा डरता हूँ
घुट घुट कर मरता हूँ
अपनों को तरसा हूँ
अब हर लम्हा डरता हूँ
कहती थी दादी मुझसे
अच्छे को अच्छा होता
रब को प्यारा बच्चा होता
फिर क्यूँ मुझको चोटें आई ?
सुना नहीं जो आवाज लगाई
दादी की भी बात न मानी
बर्बादी करने की ठानी
ज़िसके रहते भी बस खोना है
ऐसे रब को क्या रोना है
ज़िसके रहते भी बस खोना है
ऐसे रब को क्या रोना है
["ऐसे रब को क्या रोना है " लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali ]
Picture Credits: War, Marc Chagall, 1966, Symbolic Surrealism